बच्चों से दुष्कर्म के डेढ़ लाख मामले इंसाफ की आस: अदालतों में अटके पड़े हैं
26 Jul 2019
अप्रैल 2017 में सात साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म किया गया और मरने के लिए एक गड्ढे में फेंकने से पहले बुरी तरह से मारा-पीटा गया था। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में घटी इस घटना को किसी अजनबी ने नहीं, बल्कि बच्ची के एक रिश्तेदार ने अंजाम दिया था। पुलिस ने 26 वर्षीय आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) गिरफ्तार भी किया था। इससे उम्मीद जगी थी कि मामले में फैसला जल्द आ जाएगा। लेकिन, उस फैसले का आज भी इंतजार ही हो रहा है। बच्चों से दुष्कर्म के करीब डेढ़ लाख मामले ऐसे हैं जो आज भी अदालतों में अटके पड़े हैं। डेढ़ लाख परिवार ऐसे हैं जो साल 2012 से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं, जब पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत बनाई गई विशेष अदालतों में दाखिल किए गए थे। इन विशेष अदालतों को इसलिए बनाया गया था कि ऐसे मामलों में फैसला जल्दी सुनाया जा सके। लेकिन जैसा कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, 'इसमें बुनियादी गड़बड़ है।' जिस जिले में ऐसे मामले 100 से ज्यादा वहां बनेगी पॉक्सो कोर्ट यह आंकड़ा सामने तब आया जब मुख्य न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने देश में बच्चों से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री और अदालत की ओर से नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने इससे संबंधित रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के साथ साझा की। इस पर हैरानी जताते हुए पीठ में शामिल न्यायाधीश दीपक गुप्ता और न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस ने केंद्र सरकार को ऐसे जिलों में जहां 100 से ज्यादा ऐसे मामले लंबित हैं वहां एक पॉक्सो अदालत का गठन किया जाए। पीठ ने इसके लिए केंद्र को दो महीने का समय दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में 670 अदालतों में पॉक्सो अपराधों के डेढ़ लाख मामले हैं। औसत निकाला जाए तो हर एक जज को रोजाना 224 मामलों में फैसला सुनाना होगा। अगर इस हिसाब से फैसले आने भी लगे तब भी अब तक के सभी मामलों में फैसला सुनाने में छह साल और लग जाएंगे, आने वाले समय में जो मामले आएंगे वह अलग। इसी का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने को कहा था कि हमारे लिए कोलेजियम उतना बड़ा मुद्दा नहीं है, जितना कि ऐसे मामले।